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19 जून 2010 को आंध्रप्रदेश सरकार ने कडप्पा जिले का नाम बदलकर “YSR जिला” रख दिया है, कहा गया कि विधानसभा ने यह प्रस्ताव पास करके हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मारे गये YSR को श्रद्धांजलि दी है।
इस आशय का प्रस्ताव 3 सितम्बर 2009 को ही विधानसभा में पेश किया जा चुका था, इस प्रस्ताव पर कडप्पा जिले के सभी प्रमुख मानद नागरिकों ने नाराजी जताई थी, तथा हिन्दू संगठनों ने विरोध प्रदर्शन भी किये, लेकिन “सेमुअल” का नाम सभी पर भारी पड़ा। उल्लेखनीय है कि सेमुअल रेड्डी ने ही 19 अगस्त 2005 को, वहाँ 1820-1829 के दौरान कलेक्टर रहे चार्ल्स फ़िलिप ब्राउन द्वारा उच्चारित सही शब्द “कुडप्पाह” को बदलकर “कडप्पा” कर दिया था।
देखा गया है कि देश की सभी प्रमुख योजनाओं, भवनों, सड़कों, स्टेडियमों, संस्थानों के नाम अक्सर “गांधी परिवार” से सम्बन्धित व्यक्तियों के नाम पर ही रखे जाते हैं, भले ही उनमें से किसी-किसी का देश के प्रति योगदान दो कौड़ी का भी क्यों न हो। (हाल ही में मुम्बई के बान्द्रा-वर्ली सी-लिंक पुल का नाम भी पहले “शिवाजी महाराज पुल” रखने का प्रस्ताव था, लेकिन वहाँ भी अचानक रहस्यमयी तरीके से “राजीव गाँधी” घुसपैठ कर गये और “शिवाजी” पर भारी पड़े)।
इसी क्रम में अब नई परम्परा के तहत “ईसाईयत के महान सेवक”, “धर्मान्तरण के दिग्गज चैम्पियन” YSR के नाम पर “देश और समाज के प्रति उनकी अथक सेवाओं” को देखते हुए कडप्पा जिले का नाम बदल दिया गया है। चूंकि यह देश नेहरु-गाँधी परिवार की “बपौती” है और यहाँ के बुद्धिजीवी उनकी चाकरी करने में गर्व महसूस करते हैं इसलिये आने वाले समय में “गाँधी परिवार” के प्रिय व्यक्तियों के नाम पर ही जिलों के नाम रखे जायेंगे।
(यह मत पूछियेगा, कि देश को आर्थिक कुचक्र से बचाने वाले, नई आर्थिक नीति की नींव रखने वाले, पूरे 5 साल तक गैर-गाँधी परिवार के प्रधानमंत्री, नौ भाषाओं के ज्ञाता, आंध्रप्रदेश के गौरव कहे जाने वाले पीवी नरसिम्हाराव के नाम पर कितने जिले हैं, कितनी योजनाएं हैं, कितने पुल हैं… क्योंकि नरसिम्हाराव न तो गाँधी-नेहरु नामधारी हैं, और न ही ईसाई धर्मान्तरण के कार्यकर्ता… इसलिये उन्हें दरकिनार और उपेक्षित ही रखा जायेगा…)। तमाम सेकुलर और गाँधी परिवार के चमचे बुद्धिजीवियों और बिके हुए मीडिया की “बुद्धि” पर तरस भी आता है, हँसी भी आती है… जब वे लोग राहुल गाँधी को “देश का भविष्य” बताते हैं… साथ ही कांग्रेस शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों पर दया भी आती है कि, आखिर ये कितने रीढ़विहीन और लिज़लिज़े टाइप के लोग हैं कि राज्य की किसी भी योजना का नाम उस राज्य के किसी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक व्यक्तित्व के नाम पर रखने की बजाय “गाँधी परिवार” के नाम पर रख देते हैं, जिनके नाम पर पहले से ही देश भर में 2-3 लाख योजनाएं, पुल, सड़कें, बगीचे, मैदान, संस्थाएं आदि मौजूद हैं।
“गुलाम” बने रहने की कोई सीमा नहीं होती, यह इसी बात से स्पष्ट होता है कि ब्रिटेन की महारानी के हाथ से “गुलाम” देशों के “गुलाम” नागरिकों के मनोरंजन के लिये बनाये गये “खेलों” पर अरबों रुपये खुशी-खुशी फ़ूंके जा रहे हैं, कलमाडी और प्रतिभा पाटिल, दाँत निपोरते हुए उन खेलों की बेटन ऐसे थाम रहे हैं, जैसे महारानी के हाथों यह पाकर वे कृतार्थ और धन्य-धन्य हो गये हों। यही हाल कांग्रेसियों और देश के तमाम बुद्धिजीवियों का है, जो अपने “मालिक” की कृपादृष्टि पाने के लिये लालायित रहते हैं। कडप्पा का नाम YSR डिस्ट्रिक्ट करने का फ़ैसला भी इसी “भाण्डगिरी” का नमूना है।
परन्तु इस मामले में “परम्परागत कांग्रेसी चमचागिरी” के अलावा एक विशेष एंगल और जुड़ा हुआ है। उल्लेखनीय है कि YSR (जो “हिन्दू” नाम रखे हुए, लाखों ईसाईयों में से एक थे) “सेवन्थ डे एडवेन्टिस्ट” थे, और YSR ने आंध्रप्रदेश में नये चर्चों के बेतहाशा निर्माण, धर्मान्तरण के लिये NGOs को बढ़ावा देने तथा इवेंजेलिकल संस्थाओं को मन्दिरों से छीनकर कौड़ी के दाम ज़मीन दान करने का काम बखूबी किया है, इसीलिये यह साहब “मैडम माइनो” के खास व्यक्तियों में भी शामिल थे। वह तो शुक्र है आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट का जिसने तिरुपति तिरुमाला की सात पहाड़ियों में से पाँच पहाड़ियों पर “कब्जा” करने की YSR की बदकार कोशिश को खारिज कर दिया (हाईकोर्ट केस क्रमांक 1997(2) ALD, पेज 59 (DB) – टीके राघवन विरुद्ध आंध्रप्रदेश सरकार), वरना सबसे अधिक पैसे वाले भगवान तिरुपति भी एक पहाड़ी पर ही सीमित रह जाते, और उनके चारों तरफ़ चर्च बन जाते।
(http://vijayvaani.com/FrmPublicDisplayArticle.aspx?id=795)
प्रत्येक शहर का अपना एक इतिहास होता है, एक संस्कृति होती है और उस जगह की कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर होती हैं। “नाम” की भूख में किसी सनकी पार्टी द्वारा उस शहर की सांस्कृतिक पहचान से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। यदि कांग्रेस को अपने सम्मानित नेता की यादगार में कुछ करना ही था तो वह अस्पताल, लायब्रेरी, स्टेडियम कुछ भी बनवा सकती थी, चेन्नई में प्रभु यीशु की जैसी बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ लगवाई हैं वैसी ही एकाध मूर्ति YSR की भी लगवाई जा सकती थी (जिस पर कौए-कबूतर दिन रात बीट करते), लेकिन कडप्पा का नाम YSR के नाम पर करना वहाँ के निवासियों की “पहचान” खत्म करने समान है। उल्लेखनीय है कि “कडप्पा” एक समय मौर्य शासकों के अधीन था, जो कि बाद में सातवाहन के अधीन भी रहा। विजयनगर साम्राज्य के सेनापति, नायक और कमाण्डर यहाँ के किले में युद्ध के दौरान विश्राम करने आते थे। यह जगह प्रसिद्ध सन्त अन्नमाचार्य और श्री पोथन्ना जैसे विद्वानों की जन्मस्थली भी है। तेलुगू में “कडप्पा” का अर्थ “प्रवेश-द्वार” (Gateway) जैसा भी होता है, क्योंकि यह स्थान तिरुपति-तिरुमाला पवित्र स्थल का प्रवेश-द्वार समान ही है (ठीक वैसे ही जैसे “हरिद्वार” को बद्री-केदार का प्रवेश-द्वार अथवा “पवित्र गंगा” का भू-अवतरण स्थल कहा जाता है), ऐसी परिस्थिति में, “YSR जिला” जैसा बेहूदा नाम मिला था रखने को? (इतनी समृद्ध भारतीय संस्कृति की धरोहर रखने वाले कडप्पा का नाम एक “धर्म-परिवर्तित ईसाई” के नाम पर? जिसने ऐसा कोई तीर नहीं मारा कि पूरे जिले का नाम उस पर रखा जाये, वाकई शर्मनाक है।)
जरा सोचिये, दिल्ली का नाम बदलकर “राहुल गाँधी सिटी”, जयपुर का नाम बदलकर “गुलाबी प्रियंका नगरी”, भोपाल का नाम बदलकर “मासूम राजीव गाँधी नगर” आदि कर दिया जाये, तो कैसा लगेगा? वामपंथी ऐसा “मानते” हैं (मुगालता पालने में कोई हर्ज नहीं है) कि बंगाल के लिये ज्योति बसु ने बहुत काम किया है, तो क्या कोलकाता का नाम बदलकर “ज्योति बाबू सिटी” कर दिया जाये, क्या कोलकाता के निवासियों को यह मंजूर होगा? ज़ाहिर है कि यह विचार सिरे से ही फ़ूहड़ लगता है, तो फ़िर कडप्पा का नाम YSR पर क्यों? क्या भारत के “मानसिक कंगाल बुद्धिजीवी” और “मीडियाई भाण्ड” इसका विरोध करेंगे, या “पारिवारिक चमचागिरी” की खोल में ही अपना जीवन बिताएंगे?
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चलते-चलते : इस कदम के विरोध में हैदराबाद के श्री गुरुनाथ ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री और मुख्य न्यायाधीश के नाम एक ऑनलाइन याचिका तैयार की है, कृपया इस पर हस्ताक्षर करें… ताकि भविष्य में तिरुचिरापल्ली का नाम “करुणानिधि नगरम” या लखनऊ का नाम “सलमान खुर्शीदाबाद” होने से बचाया जा सके…
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