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कुछ दिनों पहले एक पोस्ट में सूचना दी थी, कि भारत के कुछ सेकुलर और वामपंथी संगठनों के छँटे हुए लोग फ़िलीस्तीन के प्रति एकजुटता(?) दिखाने और इज़राइल की “अमानवीय”(?) गतिविधियों के प्रति विरोध जताने के लिये एशिया के विभिन्न सड़क मार्गों से होते हुए गाज़ा (फ़िलीस्तीन) पहुँचेंगे, जहाँ वे कुछ लाख रुपये की दवाईयाँ और एम्बुलेंस दान में देंगे… (यहाँ क्लिक करके पढ़ें)
अन्ततः वह दिन भी आ गया जब 50 से अधिक बौद्धिक खतना करवा चुके कथित बुद्धिजीवी नई दिल्ली के राजघाट से प्रस्थान कर गये। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि ये लोग पाकिस्तान-ईरान-तुर्की-सीरिया-जोर्डन-लेबनान-मिस्त्र होते हुए गाज़ा पहुँचने वाले थे, लेकिन इस्लाम का सबसे बड़ा पैरोकार होने का दम्भ भरने वाले और तमाम आतंकवादियों को पाल-पोसकर बड़ा करने वाले पाकिस्तान ने इन लोगों को इस लायक नहीं समझा कि उन्हें वीज़ा दिया जाये। पाकिस्तान ने कहा कि “सुरक्षा कारणों” से वह इन लोगों को वीज़ा नहीं दे सकता (यहाँ देखें…) (यानी एक तरह से कहा जाये तो फ़िलीस्तीन के मुस्लिमों के प्रति, तथाकथित सॉलिडेरिटी दिखाने निकले इस प्रतिनिधिमण्डल की औकात पाकिस्तान ने दिखा दी, औकात शब्द का उपयोग इसलिये, क्योंकि प्रतिनिधिमण्डल में शामिल जापान के व्यक्ति को तुरन्त वीज़ा दे दिया गया)। झेंप मिटाने के लिये, इस दल के मुखिया असीम रॉय ने कहा कि “हमारी योजना लाहौर-कराची-क्वेटा और बलूचिस्तान होते हुए जाने की थी, लेकिन चूंकि अब पाकिस्तान ने वीज़ा देने से मना कर दिया है तो हम तेहरान तक हवाई रास्ते से जायेंगे और फ़िर वहाँ से सड़क मार्ग से आगे जायेंगे…”।
बहरहाल, कारवाँ-टू-फ़िलीस्तीन के सदस्यों द्वारा गिड़गिड़ाने और अन्तर्राष्ट्रीय मुस्लिम बिरादरी का हवाला दिये जाने की वजह से पाकिस्तान ने इन लोगों को भीख में लाहौर तक (सिर्फ़ लाहौर तक) आने का वीज़ा प्रदान कर दिया है। अभी सिर्फ़ 34 लोगों को लाहौर तक का वीज़ा दिया है बाकी लोगों को बाद में दिया जायेगा (यहाँ देखें…), प्रतिनिधिमण्डल वाघा सीमा के द्वारा लाहौर जायेगा। इनकी योजना 28 दिसम्बर को गाज़ा पहुँचकर नौटंकी करने की है। “नौटंकी कलाकारों की इस गैंग” को, राजघाट से मणिशंकर अय्यर (जी हाँ, वीर सावरकर को गरियाने वाले अय्यर) एवं दिग्विजयसिंह (जी हाँ, आज़मगढ़ को मासूम बताकर वहाँ मत्था टेकने वाले ठाकुर साहब) ने हरी झण्डी दिखाकर रवाना किया।
ऐसा कहा और माना जाता है कि सत्कर्मों और चैरिटी की शुरुआत अपने घर से करना चाहिये… लेकिन सेकुलरों की यह गैंग भारत के कश्मीरी पण्डितों को “अपना” नहीं मानती, इसलिये सुदूर फ़िलीस्तीन के लिये, दिल्ली में पाकिस्तानी दूतावास के सामने गिड़गिड़ाने में इन्हें शर्म नहीं आई, जबकि दिल्ली में ही झुग्गियों में बसर कर रहे, कश्मीर से विस्थापित होकर आये पण्डितों का दर्द जानने की फ़ुरसत इन्हें नहीं मिलती…, बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों को लेकर कभी ये बौद्धिक खतने, चटगाँव या पेशावर तक अपना कारवाँ नहीं ले जाते…। विदेश न सही, भारत के असम में बांग्लादेशी शरणार्थी(?) जिस प्रकार की दबंगई दिखा रहे हैं उसके लिये कभी कारवां निकालने की ज़हमत नहीं उठायेंगे… और जैसा कि पिछले लेख में कहा था कि सेकुलरों-वामपंथियों का यह गुट न तो गोधरा जायेगा जहाँ 56 हिन्दू जलाकर मार दिये गये, न तो यह गुट उड़ीसा जायेगा जहाँ धर्मान्तरण के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वाले वयोवृद्ध स्वामी लक्षमणानन्द की हत्या कर दी जाती है… लेकिन यह सभी लोग भाईचारा दर्शाने(?) फ़िलीस्तीन अवश्य जाएंगे…। कारण भी साफ़ है कि असम हो या कन्याकुमारी, फ़िजी हो या कैलीफ़ोर्निया… हिन्दुओं के पक्ष में आवाज़ उठाने से न तो “मोटा विदेशी चन्दा” मिलता है, न ही राजनीति चमकती है, न ही कोई पुरस्कार वगैरह मिलता है… और इतना सब करने के बावजूद पाकिस्तान की निगाह में इन लोगों की हैसियत “मुहाजिरों” जैसी है, इसीलिये इन्हें सुरक्षा देना तो दूर, वीज़ा तक नहीं दिया, बावजूद इसके, “बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना” की तर्ज पर उनके तलवे चाटने से बाज आने वाले नहीं हैं ये लोग…।
ऐ इज़राइल वालों… भारत से एक सेकुलर पार्सल आ रहा है “उचित” साज-संभाल कर लेना… अर्ज़ करते हैं कि पसन्द आये या न आये आप अपने यहाँ रख ही लो, वापस भेजने की जरुरत नहीं… इधर पहले ही बहुत सारे पड़े हैं…
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बौद्धिक खतना :- बड़ी देर से पाठक सोच रहे होंगे कि यह “बौद्धिक खतना” कौन सा नया शब्द है। मुस्लिमों के धार्मिक कर्म “खतना” के बारे में आप सभी लोग जानते ही होंगे, उसके पीछे कई वैज्ञानिक एवं धार्मिक कारण गिनाये जाते रहे हैं, मैं उनकी डीटेल्स में जाना नहीं चाहता…। खतना करवाने वाले मुस्लिम तो अपने धर्म का ईमानदारी से पालन करते हैं, उनमें से बड़ी संख्या में भारतीय संस्कृति एवं हिन्दुओं के खिलाफ़ दुर्भावना नहीं रखते…। जबकि “बौद्धिक खतना” सिर्फ़ हिन्दुओं का किया जाता है, यह एक ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसमें हिन्दुओं के दिमाग की एक नस गायब कर दी जाती है जिससे वह हिन्दू अपने ही हिन्दू भाईयों, भारतीय संस्कृति, भारत की अखण्डता, भारत के स्वाभिमान, राष्ट्रवाद… जैसी बातों को या तो भूल जाता है या उसके खिलाफ़ काम करने लगता है…। इस प्रक्रिया को एक दूसरा नाम भी दिया जा सकता है – “मानसिक बप्तिस्मा”, यह भी सिर्फ़ हिन्दुओं का ही किया जाता है और बचपन से ही “सेंट” वाले स्कूलों में किया जाता है।
जिस प्रकार “बौद्धिक खतना” होने के बाद ही व्यक्ति को “ग” से गणेश कहने में शर्म महसूस होती है, और वह “ग” से गधा कहता है… उसी प्रकार मानसिक बप्तिस्मा हो चुकने की वजह से ही सरकार में बैठे लोग, सिस्टर अल्फ़ोंसा की तस्वीर वाला सिक्का जारी करते हैं… या फ़िर कांची के शंकराचार्य को ठीक दीपावली के दिन गिरफ़्तार करते हैं… रामसेतु को तोड़ने के लिये ज़मीन-आसमान एक करते हैं, ताकि हिन्दुओं में हीन-भावना निर्माण की जा सके। नगालैण्ड में “नागालैण्ड फ़ॉर क्राइस्ट” का खुल्लमखुल्ला अलगाववादी नारा लगाने वाले एवं जगह-जगह इसके बोर्ड लगाने के बावजूद यदि कोई कार्रवाई नहीं होती…, तिरंगा जलाने वाले हुर्रियत के देशद्रोही नेता भारत भर में घूम-घूमकर प्रवचन दे पाते हैं…, भारत की गरीबी बेचकर रोटी कमाने वाली अरुंधती रॉय भारत को “भूखे-नंगों का देश” कहती है… एक छिछोरा चित्रकार नंगी कलाकृतियों को सरस्वती-लक्ष्मी नाम देता है और बचकर निकल जाता है… यह सब बौद्धिक खतना या मानसिक बप्तिस्मा के ही लक्षण हैं…
(इन शब्दों की व्याख्या तो कर ही दी है, उम्मीद करता हूँ कि “शर्मनिरपेक्षता” और “भोन्दू युवराज” की तरह ही यह दोनों शब्द भी जल्दी ही प्रचलन में आ जायेंगे…)
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